सोनभद्र की धरोहर है आदिवासी सभ्यता- डॉ बृजेश महादेव
जनपद सोनभद्र के विकासखंड घोरावल के ग्राम पंचायत सेमराकला में बेलन की सहायक नदी पर स्थित ढोंढ़उरा फाल में आदिवासी पूजते हैं प्रकृति शक्ति “फडापेन सजोर पेन का प्रतीक चिन्ह”. यहां के स्थानीय लोग इस प्रतीक चिन्ह को आदि शक्ति का रूप मानते हैं.
सजोर पेन और फड़ा पेन का मतलब भी जानना जरूरी है.
सजोर पेन का मतलब ईष्ट , पूज्यनीय जो हमसे बड़े (पुरखे) वो शक्ति जो वेन (जीवित व्यक्ति ) मरने के बाद पेन ( मृत आत्मा ) जिनके सम्मान हम किसी नियत स्थान पर करते हैं । जो घर के बाहर यानि येन मड़ा (साजा पेड़) में मनाते हैं ।और जैसे हम जीवित व्यक्तियों का एक परिवार होता है उसी प्रकार हमारे मृत आत्माओं को भी बेड़ागत कुंडा नेंग ( संस्कार ) के तहत मिला दिया जाता है जिनका एक परिवार होता है ।जिसे सजोर पेन विरंदा कहते हैं, और उन्हे जहाँ स्थापित किया जाता है उस स्थान को सजोर पेन ठाना कहते हैं । जिनके मुखिया अव्वा (मातृ ) पक्ष में पालो और बाबो (पितृ ) पक्ष में बूढ़ाल पेन होते हैं तथा फड़ापेन वह शक्ति है जो पाँच तत्व धरती , आग , हवा , पानी, आकाश, इन पाँच तत्वों के संघठन से जो समस्त जीव जगत को जीवन प्रदान करने वाली शक्ति को फड़पेन कहते हैं । प्रकृति शक्ति फडापेन सजोर पेन का प्रतीक चिन्ह आज सम्पूर्ण गोंडियन गणों में आस्था और विष्वास के रूप में स्थापित हो चुका है । मूलनिवासी गणों की हजारों वर्ष पुरानी मान्यतायें जो पूर्ण वैज्ञानिकता लिये हैं। आज उनकी अच्छी प्रस्तुति या व्याख्या के अभाव में पिछडेपन का प्रतीक बनकर कथित विकसित समाज के सामने कमजोर दिखाई देती हैं। गोंडियन गणों का मूल दर्शन पूर्णतः जीव जगत कल्याण और प्रकृति संतुलन पर आधारित है. इसे निम्न प्रकार से समझा जा सकता है
प्रकृति भूभाग या आधार जिस पर सम्पूर्ण जीव जगत टिका हुआ है जन्मता विलीन होता है । 750 गोत्रों की व्यवस्था इसी धरती पर संचालित है अतः अंकित किया गया है । इस धरती पर गण्ड जीव जो शरीर मानसिक और बौद्धिक तत्व के साथ विकसित होता है । त्रिमार्ग ही है उसे यथा अंकित किया। गण्ड जीव के विकासक्रम में ऋण और धन शक्ति जो सदैव नवसृजन का उत्तरदायी होता है इसे प्रदर्षित किया गया है । गोलाकार के बीच में छिद्र है । यह भाग समाज के रूप में विकसित होकर 12 सगा घटको के समूह रूप में सारी दुनिया में दिखाई देता है जो प्रकृति प्रदत्त प्रमुख चार रक्त समूह में विद्धमान हैं । यही जीवित वेन हैं । जो मरने पर पेन के रूप में हमारी व्यवस्था में सदैव विद्धमान रहते हैं । इसमें 12 किरण ही फूटना चाहिए . यह नुकीला घेरा उपरोक्त व्यवस्था को राजकारण से संरक्षण दिये जाने के रूप में है जिन्हें हमारे 88 शम्भुओं द्वारा संरक्षक के रूप में दर्शाया गया है । इसमें केवल 88 नोक ही बनाये जायें ।. जनपद सोनभद्र के घोरावल विकासखंड के नदी बेसिन में आज भी मूल निवासी अपने पूर्वजों की आत्माओं के साथ प्राकृतिक शक्ति की पूजा कर रहे हैं.