सोनभद्र

बीजपुर बाजार में छठ की रौनक बड़ी

 

बग्घा सिंह/असफाक कुरैशी

बीजपूर / सोनभद्र /महापर्व छठ की शुरुआत हो चुकी है शहर- शहर गांव -गांव छठ माता की जगह जगह गीत गाए जा रहे हैं एवं घाटों की साफ-सफाई की जा रही है महिलाएं सुबह से घाटों पर पूजा पाठ कर रही हैं। बाजारों में खासी रौनक दिख रही है। छठ के लिए जमकर खरीदारी हो रही है गन्ने की डाली एवं बांस के सामानों की भी खरीदारी जोरों पर की जा रही है। छठ का माहौल खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार झारखंड में खासी उत्साह के साथ देखा जा सकता है। चार दिन चलने वाले छठ महापर्व की शुरुआत नहाए खाए से हो गई है। भगवान सूर्य और छठ माता को समर्पित महापर्व छठ हर साल कार्तिक मास को शुक्ल पक्ष के साथ सती तिथि को मनाया जाता है इसमें संतान के स्वस्थ, सफलता, और दीर्घायु के लिए समर्पित 36 घंटे का निर्जला उपवास किया जाता है इस पर्व को संतान के लिए रखा जाता है कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है पहला दिन नहाए- खाए दूसरे दिन खरना तीसरे दिन डूबते सूर्य को चौथे दिन उगते सूर्य को अर्ग दिया जाता है छठ पूजा को लेकर घाट जगह-जगह सज गए हैं घाटों पर उगते सूर्य को अर्ग देने के लिए जोरों पर तैयारियां चल रही है छठ के पहले दिन सुबह से व्रत रखने वाली महिलाएं घाटों पर पूजा पाठ करने पहुंची पहले दिन नहाए खाए के दिन व्रती महिलाएं लौकी दाल की सब्जी खाती है। बाजारों में छठ को लेकर लौकी, कद्दू की खरीदने के लिए लोगों की भीड़ दिख रही है छठ को आस्था का महापर्व कहा जाता है इस पर्व पर बांस से बनी सामानों का विशेष महत्व है। पूजा में बांस की सूप, डाला, दौरा, में ही भगवान भास्कर को प्रसाद अर्पित किया जाता है बाजारों में इन सामानों की जमकर खरीदारी की जा रही है छठ में गन्ने की डाली और गुड़ की बिक्री धड़ल्ले से हो रही है। दरअसल छठ में गन्ने और गुड़ का काफी महत्व होता है सूप में दौरा सजाने के लिए जहां गन्ने की खरीदारी हो रही है वही गुड़ के ठेकुआ और रसिये का प्रसाद जरूरी होता है इसीलिए किसानों को छठ पूजा का इंतजार रहता है नहाए खाए के दूसरे दिन खरना होता है खरने के दिन राजभोग तैयार किया जाता है इसमें शाम के समय मीठा भात या लौकी दाल का खिचड़ी खाने का नियम होता है इसके बाद व्रत का तीसरा दिन दूसरे दिन के ठीक बाद से ही शुरू हो जाता है छठ पूजा में तीसरा दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है व्रती महिलाएं गीत गाने के साथ ठेकुआ और अन्य प्रसाद के सामान के साथ दौउरा घाट पर ले जाने को सजाती है क्योंकि इस दिन शाम के समय महिलाएं या पुरुष पानी में खड़े होकर डूबते सूर्य को अर्ग देने की परंपरा है। वही चौथे दिन सूप में दूध या जल रखकर उगते सूर्य को अर्ग देने की भी परंपरा है। अर्ग देते ही छठ का समापन हो जाता है। इसी के साथ छठी मैया से संतान और परिवार के स्वास्थ्य की कामना की जाती है।

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