सोनभद्र

*नामित सभासदों ने आदर्श नगर पंचायत प्रशासन पर लगाया भ्रष्टाचार का आरोप।*

अशोक मद्धेशिया
संवाददाता
*शासन से नामित सभासदों ने बंद पड़े संस्कार भवन को चालू कराने के लिए नगर पंचायत प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोला।*
चोपन/सोनभद्र। आदर्श नगर पंचायत की श्रेणी में आता है। लेकिन इन दिनों आदर्श नगर पंचायत उ० प्र० से नामित सभासदों के ने नगर पंचायत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। दरअसल काली मंदिर के क्षेत्र में बना संस्कार भवन की दुर्दशा को लेकर जनता की शिकायत पर मनोनीत सभासदों ने संस्कार भवन का निरीक्षण किया। इतनी बड़ी हिन्दू आबादी क्षेत्र में लगभग 2 साल से बंद संस्कार भवन चालू ना होने से कई वार्ड वासियों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। नामित सभासद महेंद्र केसरी ने बताया कि, 2008-09 में संस्कार भवन/मैरिज हाल की स्थापना के लिए न्यू रखी गई थी। 2011 में बंद कर तैयार हो गया। 2008-9 में लगभग 15 लाख रुपए के बजट का आवंटन हुआ था। लेकिन भवन बनते-बनते यह रकम दोगुनी हो गई। इतना ही नहीं कई बार भवन की रिपेरिंग के नाम पर पैसों का बंटरबाट नगर पंचायत एवं ठेकेदारों द्वारा किया गया। लेकिन मैरिज हाल की स्थिति बद से बदतर होती चली गई। जिसको लेकर सभासद अनिल जायसवाल ने भी लिखित शिकायत दर्ज कराई थी। लेकिन आज तक अधिशासी अधिकारी द्वारा ना ही जांच टीम गठित की गई और ना ही जेई को भेज कर मैरिज हाल का मौका मुआयना किया गया। सभासदों की मांग है कि जल्द से जल्द संस्कार भवन को ठीक कराया जाए और दोषी लोगों के खिलाफ जांच बैठाई जाए। अगर मैरिज हाल जल्द ही चालू नहीं होता है तो इसके खिलाफ धरना प्रदर्शन देने से भी गुरेज नहीं करेंगे। महेंद्र केसरी का कहना है कि, हिंदू की आस्था का केंद्र काली मंदिर पर बने संस्कार भवन में पूजा-पाठ वह शादी-विवाह से लेकर कई तरह के तमाम कार्यक्रमों का आयोजन होता आया है और लोगों को उम्मीद का केंद्र भी संस्कार भवन रहता है। वही मनोनीत सभासद सोनी रावत ने कहा कि, संस्कार भवन लगभग 2 साल से बन्द है और अधिशासी अधिकारी जांच के नाम पर लोगों को बरगलाने का काम कर रहे। अगर जल्द से जल्द नगर पंचायत द्वारा निर्मित संस्कार भवन चालू नहीं होता तो हम सब अनशन के माध्यम से उच्च स्तरीय जांच की मांग करेंगे। सोनी रावत ने कहा, संस्कार भवन चालू करा कर नगर पंचायत जनहित में पुण्य का भागी बने।
सबसे बड़ा सवाल लगभग 2 साल से बन्द संस्कार भवन की आखिर मरम्मत कराने में क्या दिक्कत है। अगर भवन वन विभाग के एरिया में आता है तो 2008-09 में ही उसका समाधान कर लेना चाहिए था। दूसरा एक भवन जब तैयार होता है तो उसका अस्तित्व कितने वर्षों तक का होता है। अगर उस अवधि से पहले भवन ज़र्ज़र हो चुका है तो संबंधित ठेकेदार के खिलाफ एक्शन क्यों नहीं लिया गया।

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