सोनभद्र

-हिमालय पुत्री उमा ने भगवान शिव को प्राप्त करने  के लिए किया था प्रथम हरितालिका तीज व्रत

राकेश केशरी,

विंढमगंज।हमारा भारत देश त्योहारों का देश है।बिभन्न समुदायों के लोग एक साथ रहते हुए भी एकता में अनेकता की खुशबु यहाँ की मिट्टी में मिलती है। हरतालिका तीज व्रत पर आज शांम लगभग पांच बजे से मां काली मंदिर के प्रांगण में मंदिर के पुजारी राजू रंजन तिवारी वह हनुमान मंदिर के प्रांगण में मंदिर के पुजारी आनंद कुमार द्विवेदी के द्वारा व्रती माताओं को कथा में बाता रहे थे कि यह व्रत त्यौहार भादो महीने के शुक्ल पक्ष के तृतीया तिथि को मनाई जाती है क्यों और कैसे मनाते हैं हरितालिका तीज व्रत ….एक मान्यता के अनुसार इसे सबसे पहले गिरिराज हिमालय की पुत्री उमा ने किया था जिसके फलस्वरूप भगवान शंकर उन्हें पति के रूप में प्राप्त हुए। कथा के अनुसार पूर्वकाल में जब दक्ष कन्या सती, पिता के यज्ञ में अपने पति भगवान शिव की उपेक्षा होने पर भी पहुंच गई।तब उन्हें बड़ा तिरस्कार सहना पड़ा। ऐसे तिरस्कार का उन्हें अंदेसा नही था।
पिता के यहां पति का अपमान देखकर वह इतनी क्षुब्ध हुईं कि उन्होंने अपने आप को अग्नि में समाहित कर भस्म कर दिया। वर्षों बाद वे उमा ही मैना और हिमाचल की तपस्या से संतुष्ट होकर उनके यहां पुत्री के रूप में प्रकट हुईं। उस कन्या का नाम पार्वती रखा गया।
इस जन्म में भी उनकी पूर्व-स्मृति बनी रही और वे सदा भगवान शंकर के ध्यान में ही मग्न रहतीं। अपनी इच्छा से वर की प्राप्ति के लिए पार्वती जी तपस्या करती गईं।माता पार्वती किसी भी कीमत पर भगवान शिव को पति के रूप में पाना चाहती थी। पुत्री को तपस्या करते देख पिता हिमाचल चिन्तित हो उठे।उन्होंने देवर्षि नारद के परामर्श पर अपनी बेटी उमा का विवाह भगवान विष्णु से करने का निश्चय किया।वहीँ पार्वती को जब यह समाचार मिला तो वह बहुत दुखी हुईं। पार्वती जी मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ीं। सखियों के उपचार से होश में आने पर उन्होंने उनसे अपने हृदय की बात कही कि वे शिव जी के अलावा अन्य किसी से विवाह कदापि नहीं करेंगी।शिव जी के प्रति पार्वती का प्रेम जानकर सखियां बोलीं, विष्णु जी के साथ विवाह कराने हेतु तुम्हें लेने के लिए तुम्हारे पिता आते ही होंगे। आओ जल्दी चलो, हम तुम्हें लेकर किसी घने जंगल में छुप जाएं। इस प्रकार पार्वती जी का उनके ही सखियों ने हरण कर लिया। पार्वती जी की सखियों के द्वारा पार्वती का हरण किए जाने के कारण इस व्रत का नाम हरतालिका पड़ा। तब से पुरे देश में इस ब्रत को करने का बिधान बना।सुहागिनें अपने सुहाग की रक्षा एवं लोकमंगल की कामना हेतु  इस दिन व्रत रखकर माता पार्वती की पूजा करती हैं।

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