किसान विरोधी नियम को सरकार ले वापस -आशु
किसान विरोधी नियम को सरकार ले वापस -आशु
1- इस नीति के आने से किसान नहीं तय कर पाएगा अपना अमूल्य निर्धारण
2- यह विधेयक सीधे-सीधे पूंजीपति लोगों को देगा बढ़ावा
3-लाखों-करोड़ों मंडी में काम करने वाले पूरे देश के आड़तिया ,मुनीम, धुलाईदार, ट्रांसपोर्टर,सेलर हो जाएंगे बेकार
सोनभद्र::भारतीय युवा कांग्रेस के जिला अध्यक्ष आशुतोष कुमार दुबे (आशु) की अध्यक्षता में युवा कांग्रेस के लोगों ने युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीनिवासन जी के आवाहन पर पूरे देश में किसानों के समर्थन में ज्ञापन देने की बात कही गई जिसको लेकर आज अपर जिलाधिकारी को किसान विरोधी जो विधेयक है उसको लेकर ज्ञापन सौंपा ।आशू दुबे ने कहा कि युवा कांग्रेस किसानों /आम जनमानस के हित में उनकी मांग को लेकर ज्ञापन देने का काम कर रहा हैं । देश के 62 करोड़ किसान मजदूर व 250 से अधिक किसान संगठन इस कानून के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं पर वर्तमान सरकार इस को दरकिनार कर रहा है सड़कों पर किसान मजदूर आ रहे हैं अपनी मांगों को लेकर लेकिन उनकी बातों को दबाने का काम या मौजूदा सरकार कर रही है जो प्रमुख चीजें हैं उसको लेकर जिसमें वह इस प्रकार से है–
1- अनाज मंडी सब्जी मंडी यानी APMC को खत्म करने से कृषि उपज खरीद व्यवस्था पूरी पूरी तरह नष्ट हो जाएगी ऐसे में किसान को ना तो न्यूनतम समर्थन मूल्य MSP मिलेगा और ना ही बाजार के भाव के अनुसार फसल की कीमत अगर पूरे देश में कृषि उपज मंडी व्यवस्था ही खत्म हो गई तो इससे सबसे बड़ा नुकसान किसान खेत मजदूर का होगा और फायदा मुट्ठी भर पूंजी पतियों का।
2- सरकार का दावा है कि किसान अपनी फसल देश में कहीं भी बैठ सकता है आज भी किसान अपनी फसल किसी भी प्रांत में ले जाकर बेच सकता है परंतु वास्तविकता सत्य है कि कृषि संसद सेंसस 2015 16 के मुताबिक देश का 86% किसान 5 एकड़ की भूमि पर का मालिक है जमीन की औसत मूल्य 2 एकड़ या उससे कम है ऐसे में 86 पदक किसान अपनी उपज नजदीक अनाज मंडी, सब्जी मंडी के अलावा कहीं और ट्रांसपोर्ट करके ले जा सकता है ना बेच सकता है मंडी प्रणाली नष्ट होते ही सीधा प्रहार संभावित तौर पर किसान पर होगा।
3- मंडिया खत्म होते ही अनाज सब्जी मंडी में काम करने वाले लाखों करोड़ों मजदूर, आडतियां, मुनिम, ढुलाईदार, ट्रांसपोर्टरों सेलर आज की रोजी रोटी और आजीविका अपने आप खत्म हो जाएगी।
4- किसान को खेत के नजदीक अनाज मंडी, सब्जी मंडी में उचित दाम किसान के सामूहिक संगठन था मंडी में खरीददारों के आपस के कंपटीशन के आधार पर मिलता है मण्डी में पूर्व निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य MSP किसान की फसल के मूल्य निर्धारण का बेंच मार्क है यही एक उपाय है कि जिससे किसान की उपज की सामूहिक तौर से प्राइस डिस्कवरी मूल्य निर्धारण हो पाता है अनाज सब्जी, मंडी व्यवस्था किसान की फसल की सही कीमत सही वजन सही बिक्री की गारंटी है अगर किसान की फसल को मुट्ठी भर कंपनियां मण्डी में सामुहिक खरीद के बजाय खेत से खरीदेंगे तो फिर धारण तो फिर मूल्य निर्धारण वजन व कीमत की सामूहिक भाव की शक्ति खत्म हो जाएगी जिसका सीधा प्रभाव किसानों पर पड़ेगा।
5- अनाज सब्जी मंडी व्यवस्था खत्म होने के साथ ही प्रांतों की आय भी खत्म हो जाएगी प्रांत मार्केट फीस वह ग्रामीण विकास फंड के माध्यम से ग्रामीण अंचल का ढांचागत विकास करते हैं वह खेती को प्रोत्साहित प्रोत्साहन देते हैं उदाहरण के तौर पर पंजाब ने इस गेहूं सीजन में 127.45 लाख टन गेहूं खरीदा पंजाब को 736 करोड रुपए मार्केट फीस उतना ही पैसा ग्रामीण विकास खंड में मिला अडतियों को 613 करोड रूपये का कमीशन मिला इन सब का भुगतान किसान ने नहीं बल्कि मंडियों से गेहूं खरीद करने वाली भारत की एफसीआई सरकारी एजेंसियां तथा प्राइवेट व्यक्तियों ने किया। मंडी व्यवस्था खत्म होते ही आय का यह स्रोत अपने आप खत्म हो जाएगा।
6- कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अध्यादेश की आड सरकार असल में शांता कुमार कमेटी की रिपोर्ट लागू करना चाहती है ताकि एफसीआई के माध्यम से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद न करनी पड़े और सालाना 80 हजार से 1.00 करोड की बचत हो इसका सीधा प्रतिकूल प्रभाव खेत खलिहान पर पड़ेगा।
7- अध्यादेश के माध्यम से किसान को ठेका प्रथा में फंसा कर उसे अपनी जमीन का मजदूर बना दिया जाएगा। क्या 2 से 5 एकड़ भूमि का मालिक गरीब किसान बड़ी–बडी कंपनियों के साथ फसल की खरीद फरोख्त का कन्ट्रक्ट बनाने समझाने का साइन करने में सक्षम है।
8- कृषि उत्पाद खाने की चीज व फल फूल सब्जियों की स्टॉक लिमिट को पूरी तरह से हटाकर आखिरकार न किसान को फायदा होगा और ना ही उपभोक्ता को। बस चीजों की जमाखोरी और कालाबाजारी करने वाले मुट्ठी भर लोगों को फायदा होगा। वह सस्ते भाव खरीद कर कानूनन जमाखोरी कर महंगे दामों पर चीजों को बेच पाएंगे।
9- अध्यादेश में ना तो खेत मजदूरों के अधिकार के संरक्षक का कोई प्रावधान है और ना ही जमीन जोतने वाले बटाईदार या मुजारो के अधिकार के संरक्षण का। ऐसा लगता है कि उन्हें पूरी तरह से खत्म कर अपने हाल पर छोड़ दिया जाएगा।
10- तीनों अध्यादेश संघीय ढांचे पर सीधे सीधे हमला है खेती व मंडियां संविधान के साथ में शेड्यूल में प्रांतीय अधिकारों के क्षेत्र में आते हैं परंतु वर्तमान सरकार ने प्रांतों से राय करना उचित नहीं समझा। खेती का
निशा को लेकर युवा कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल अपर जिलाधिकारी से मिला मुख्य रूप से उपस्थित रहने वालों में जिला उपाध्यक्ष यूथ कांग्रेस मनोज मिश्रा, विधानसभा रॉबर्ट्सगंजअध्यक्ष श्रीकांत मिश्रा, गौतम आनंद उपस्थित रहे