वृद्धों जीवन में उजाला लाने का संकल्प लें : डॉ गोरखनाथ

वृद्धों जीवन में उजाला लाने का संकल्प लें : डॉ गोरखनाथ
सोनभद्र। विश्व वृद्ध दिवस पर गुरुवार को रॉबर्ट्सगंज नगर स्थित एसएसए कार्यालय में बीएससी डॉक्टर गोरखनाथ पटेल द्वारा सेवा निर्मित पूर्व प्राथमिक शिक्षक संघ अध्यक्ष लल्लन सिंह व ज्ञानचंद द्विवेदी इन दो अध्यापकों को किया अंग वस्त्र से सम्मानित। वही श्री पटेल ने बताया कि वृद्धों एवं प्रौढ़ों के साथ होने वाले अन्याय, उपेक्षा और दुर्व्यवहार पर लगाम लगाने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 01 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिसे भिन्न-भिन्न-नामों से जाना जाता है जैसे- ‘अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस’, ‘अंतरराष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक दिवस’, ‘विश्व प्रौढ़ दिवस’ अथवा ‘अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस’ इत्यादि। इस अवसर पर अपने वरिष्ठ नागरिकों का सम्मान करने एवं उनके सम्बन्ध में चिंतन करना आवश्यक होता है।
इस दिवस का आधिकारिक तौर दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य संसार के वृद्धों एवं प्रौढ़ों को सम्मान देने के अलावा उनकी वर्तमान समस्याओं के बारे में जनमानस में जागरूकता बढ़ाना है। प्रश्न है कि दुनिया में वृद्ध दिवस मनाने की आवश्यकता क्यों हुई? क्यों वृद्धों की उपेक्षा एवं प्रताड़ना की स्थितियां बनी हुई हैं? चिन्तन का महत्वपूर्ण पक्ष है कि वृद्धों की उपेक्षा के इस गलत प्रवाह को कैसे रोकें क्योंकि सोच के गलत प्रवाह ने न केवल वृद्धों का जीवन दुश्वार कर दिया है बल्कि आदमी-आदमी के बीच के भावात्मक फासलों को भी बढ़ा दिया है। विचारणीय है कि अगर आज हम वृद्धों को अपमान करते हैं, तो कल हमें भी अपमान सहना होगा। समाज का एक सच यह है कि जो आज जवान है उसे कल बूढ़ा भी होना होगा और इस सच से कोई नहीं बच सकता। लेकिन इस सच को जानने के बाद भी जब हम बुजुर्ग लोगों पर अत्याचार करते हैं तो हमें अपने मनुष्य कहलाने पर शर्म महसूस होती है। मनुष्यता को शर्मसार करने की स्थिति है। हमें समझना चाहिए कि वरिष्ठ नागरिक समाज की अमूल्य विरासत होते हैं। उन्होंने देश और समाज को बहुत कुछ दिया होता है। उन्हें जीवन के विभिन्न क्षेत्रों का व्यापक अनुभव होता है। हम आज परिवार, समाज एवं राष्ट्र को ऊँचाइयों पर ले जाने के लिए वरिष्ठ नागरिकों के अनुभव से लाभ उठा सकता है। लेकिन इसके लिये वृद्धों का उपेक्षा एवं उदासीनता की त्रासद एवं विडम्बनापूर्ण स्थितियों को समाप्त करना होगा। वृद्ध अपने ही घर की दहलीज पर सहमा-सहमा खड़ा है, उसकी आंखों में भविष्य को लेकर भय है, असुरक्षा और दहशत है, दिल में अन्तहीन दर्द है। इन त्रासद एवं डरावनी स्थितियों से वृद्धों को मुक्ति दिलानी होगी। सुधार की संभावना हर समय है। हम पारिवारिक जीवन में वृद्धों को सम्मान दें, इसके लिये सही दिशा में चले, सही सोचें, सही करें। इसके लिये आज विचारक्रांति ही नहीं, बल्कि व्यक्तिक्रांति की जरूरत है।