उत्तर प्रदेश

आदिवासी दलितों को चुनाव से वंचित करना चाहता है आरएसएस – डा. चंद्रदेव गोंड़

आदिवासी दलितों को चुनाव से वंचित करना चाहता है आरएसएस – डा. चंद्रदेव गोंड़

पंचायत चुनाव में बाध्यता का होगा चौतरफा विरोध 

आईपीएफ ने कहा सड़क से लेकर न्यायालय तक लड़ेंगे

दुद्बी(रवि सिंह)सोनभद्र 1 सितंबर 2020, आरएसएस-भाजपा की योगी सरकार द्वारा पंचायत चुनाव में शैक्षणिक और बच्चों की संख्या बाध्यता की कोशिश और कुछ नहीं दलित, आदिवासी, अति पिछड़ों, महिलाओं और गरीबों को चुनाव लड़ने के अधिकार से वंचित करने का संविधान विरुद्ध प्रयास है, जिसका सड़क से लेकर न्यायालय तक प्रतिवाद किया जाएगा. यह बयान ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के नेता और मुरता के प्रधान डॉक्टर चंद्रदेव गोंड़ और तुरीडीह के प्रधान विध्वंस घसिया ने प्रेस को दिया. उन्होंने कहा इस पर जन प्रतिनिधियों से सम्पर्क किया जा रहा है और शीघ्र ही ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के नेता दिनकर कपूर के साथ दुद्धी तहसील के सभी प्रधानों व जन प्रतिनिधियों की वर्चुअल बैठक कराई जाएगी और प्रस्ताव लेकर आंदोलन की रणनीति तैयार की जाएगी

उन्होंने कहा की लंबे आंदोलन के बाद आदिवासी समुदाय को पंचायत से लेकर विधानसभा तक चुनाव लड़ने का अधिकार मिला था. भाजपा और आरएसएस ने लगातार इसका विरोध किया और अब पंचायत चुनाव में शैक्षणिक और बच्चों की संख्या की बाध्यता लाकर वह चुनाव लड़ने के अधिकार से ही पुनः वंचित करना चाहती है

उन्होंने कहा कि सभी लोग जानते हैं कि आमतौर पर दलित, आदिवासी, अति पिछड़े, महिलाएं और गरीब समाज के लोग शैक्षणिक स्तर पर उन्नत नहीं होते. अपनी गरीबी के कारण उनके पास पढ़ने का साधन नहीं होता और पिछड़ेपन के कारण बच्चों के परिवार नियोजन का भी उस तरह से अनुपालन वह नहीं करते रहें हैं. भाजपा की सरकार ने यह कोशिश इसके पूर्व हरियाणा में भी की थी. जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया और सरकार को पीछे हटना पड़ा था. उत्तर प्रदेश में भी जैसी की सूचनाएं मिल रही हैं कि पंचायत चुनाव के पहले सरकार पंचायती राज कानून में संशोधन कर रही है और जिला पंचायत के लिए बारहवीं, क्षेत्र पंचायत के लिए दसवीं और प्रधान के लिए आठ पास की शैक्षणिक योग्यता व दो बच्चों की बाध्यता को ला रही है. जो लोकतंत्र में चुनाव लड़ने के अधिकार से वंचित करने की कोशिश है.उन्होंने कहा कि जिस देश के प्रधानमंत्री इनटायर पॉलिटिक्स जो विषय ही न किसी ने सुना है न पढ़ा है उसमें एमए हो और शिक्षा मंत्री तक कक्षा दस पास रही हो. देश के राष्ट्रपति से लेकर कई राज्यों के मुख्यमंत्री तक महज साक्षर रहे हो, वहां जमीनी स्तर पर लोकतंत्र की सबसे मजबूत कड़ी पंचायत में बारहवीं तक की शैक्षणिक योग्यता तय करना अपने आप में संविधान विरोधी, मनमर्जीपूर्ण और औचित्यहीन है. इसका सभी आदिवासी समाज को एकजुट करके प्रतिवाद किया जाएगा और सरकार को अपने कदम वापस खींचने के लिए मजबूर किया जाएगा.

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