नौजवानो के आदिवासी नेता के रूप में सर्वप्रथम आगे आए बिरसा मुंडा-आशु
नौजवानो के आदिवासी नेता के रूप में सर्वप्रथम आगे आए बिरसा मुंडा-आशु
1- ‘धरती बाबा’ के नाम से भी जाने जाते थे बिरसा मुंडा
2- आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ने में अपना जीवन कर दिया समर्पित
3- बहुत ही कम उम्र में अंग्रेजों के शिकार हुए बिरसा मुंडा
4- धोखे से जहर देकर अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा को उतारा मौत के घाट
सोनभद्र (वली अहमद सिद्दीकी)भारतीय युवा कांग्रेस सोनभद्र द्वारा आदिवासियों के जननायक उनके नेता और उनके हक की लड़ाई लड़ने में अपना पूरा जीवन समर्पित कर देने वाले बिरसा मुंडा की पुण्य तिथि भारतीय युवा कांग्रेस के जिला अध्यक्ष आशुतोष कुमार दुबे (आशु) के नेतृत्व में युवा कांग्रेस ने मनाया ।आशु दुबे ने कहा कि सुगना मुंडा और करमी हातू के पुत्र बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर 1875 को झारखंड प्रदेश में राँची के खूंटी जिले उलीहातू गाँव में हुआ था। साल्गा गाँव में प्रारम्भिक पढाई के बाद वे चाईबासा इंग्लिश मिडिल स्कूल में पढने आये। इनका मन हमेशा अपने समाज की ब्रिटिश शासकों द्वारा की गयी बुरी दशा पर सोचता रहता था। उन्होंने मुंडा लोगों को अंग्रेजों से मुक्ति पाने के लिये अपना नेतृत्व प्रदान किया। 1894 में मानसून के छोटानागपुर में असफल होने के कारण भयंकर अकाल और महामारी फैली हुई थी। बिरसा ने पूरे मनोयोग से अपने लोगों की सेवा की।
1 अक्टूबर 1894 को नौजवान नेता के रूप में सभी मुंडाओं को एकत्र कर इन्होंने अंग्रेजो से लगान माफी के लिये आन्दोलन किया। 1895 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में दो साल के कारावास की सजा दी गयी। लेकिन बिरसा और उसके शिष्यों ने क्षेत्र की अकाल पीड़ित जनता की सहायता करने की ठान रखी थी और अपने जीवन काल में ही एक महापुरुष का दर्जा पाया। उन्हें उस इलाके के लोग “धरती बाबा” के नाम से पुकारा और पूजा जाता था। उनके प्रभाव की वृद्धि के बाद पूरे इलाके के मुंडाओं में संगठित होने की चेतना जागी।
बिरसा जी 1900 में आदिवासी लोगो को भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें 2 साल की सजा हो गई । और अंततः 9 जून 1900 मे अंग्रेजो द्वारा उन्हें एक धीमा जहर देने के कारण उनकी मौत हो गई। मुख्य रूप से उपस्थित रहने वालों में विधानसभा अध्यक्ष श्रीकांत मिश्रा, अनिल बियार उपस्थित रहे ।